कहानी  
  
                  "  एक ऊंट और एक सियार  "                 
एक नदी के किनारे एक ऊंट और एक सियार रहता था। वे मित्र थे। एक दिन सियार ने ऊंट से कहा, "नदी के दूसरी तरफ मक्के का एक बड़ा खेत है। अगर तुम मुझे अपनी पीठ पर नदी के उस पार ले जाओगे, तो हम दोनों अच्छा भोजन करेंगे।" ऊंट राजी हो गया। सियार ऊंट की पीठ पर बैठ गया और वे दूसरे किनारे चले गए। वे खेत में घुसे और मक्का खाने लगे। सियार ने शीघ्र ही अपना भोजन समाप्त कर लिया। तो वह इधर-उधर भागने लगा और चिल्लाने लगा। ऊंट ने उसे ऐसा न करने के लिए कहा। लेकिन सियार ने जवाब दिया, "यह मेरी आदत है। मैं खाने के बाद बिना चिल्लाए नहीं रह सकता।" सियार फिर से चिल्लाया। खेत के मालिक ने उसकी बात सुनी। वह हाथ में लाठी लेकर दौड़ता हुआ आया। सियार झाड़ियों में छिप गया। मालिक ने ऊंट पाया, उसे पीटा और उसे भगा दिया।
 कुछ देर बाद सियार ऊंट के पास आया और उससे पूछा कि क्या हुआ था। ऊंट कुछ नहीं बोला। जल्द ही उन्होंने घर लौटने का फैसला किया। सियार फिर ऊंट की पीठ पर बैठ गया। ऊंट जब नदी के बीच में पहुंचा तो वह पानी में लुढ़कने लगा। सियार ने कहा, "तुम क्या कर रहे हो? मैं डूब रहा हूँ। कृपया इसे रोको।" ऊंट ने कहा, "यह मेरी आदत है। मैं खाने के बाद पानी में लुढ़के बिना नहीं रह सकता।" ऊंट सियार के ऊपर लुढ़क गया। सियार डूब गया।
नैतिक - जैसे के लिए तैसा।       
                    या      
           जो बोओगे, सो काटोगे।






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All Rounder Karan
Karan 05d